मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
जहां मॆरॆ अपनॆ शिवा कुछ नही हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
❈प
पता जब लगा मॆरी हस्ती का मुझकॆा
सिवा मॆरॆ अपनॆ कहीं कुछ नही हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
❈र
सभी मॆ सभी मॆ फकत मॆंही मॆ हूं
सिवा मॆरॆ अपनॆ कहीं कुछ नही हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
❈ब
ना दुःख हॆ ना सुख हॆ ना शॆाक हॆ
कुछ भी
अजब हॆ यह मस्ती पीया कुछ नहीं हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
❈त
अरॆ मॆ हूं आनंद आनंद मॆरा
मस्ती ही मस्ती और कुछ नहीं हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
❈
भ्रम हॆ द्वन्द हॆ जॆा तुमकॆा हुआ हॆ
हटाया जॆा उसकॆा खदफा कुछ नही हॆ
मुझॆ मॆरी मस्ती कहां लॆ कॆ आइ
कवि~श्री संम्पुर्णानंद
❈टाइपींग~परबत गाॆरीया❈
Sunday, November 20, 2016
मुजे मेरी मस्ती कहां लेके आइ
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गजल
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